पिछले डेढ़ दशक से संस्कृत की दुर्दशा सबसे ज्यादा हुई है लेकिन इससे पूर्व संस्कृत में लोगों का करियर काफी सुनहरा रहा है। शहर में स्थित बैजनाथ संस्कृत महाविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद डॉ.राममूर्ति शर्मा ने संस्कृत में पीएचडी व डीलिट की उपाधि प्राप्त की। इसकी बदौलत वह सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के वीसी के पद पर रह चुके हैं। इसी डिग्री कालेज से पढ़कर धीरेंद्र शर्मा ने आइएएस बने। इतने ऊंचे ओहदे तक पहुंचने में संस्कृत ही सहायक बनी।
संस्कृत में भी अन्य भाषाओं की तरह भविष्य
संस्कृत विषय से आइएएस बनना आज भी मुश्किल नहीं है लेकिन इस भाषा के प्रचार से ही विद्यार्थियों में रूचि बढ़ेगी। शिक्षा के क्षेत्र में संस्कृत बहुत महत्वपूर्ण है। माध्यमिक से लेकर डिग्री कालेजों में सालों से संस्कृत के पद खाली पढ़े हैं। केंद्र सरकार आगामी सत्र से संस्कृत को कक्षा से अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में भी लागू करने जा रही है। इससे संस्कृत के प्रचार बढ़ेगा, जिससे शिक्षा के क्षेत्र में पीएचडी, एमफिल व डीलिट की उपाधि लेने वालों की संख्या भी बढ़ेगी।
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संस्कृत से ही ¨हदी का भी हित
भौतिकता व अध्यात्म में संतुलन बनाना जरूरी है और यह संस्कृत के बिना नहीं हो सकता। विशेषज्ञों के अनुसार संस्कृत को राष्ट्रीय भाषा व ¨हदी को राज्य भाषा बनाए जाए। कहते हैं कि संस्कृत से ही ¨हदी की उपज हुई है। इससे संस्कृत व ¨हदी का भी प्रचार बढ़ेगा।
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संस्कृत में भी दूसरी भाषाओं की तरह सुनहरे अवसर हैं लेकिन इसके लिए प्रचार की कमी है। प्रचार होगा तो इसे पढ़ने में रूचि भी बढ़ेगी।
आचार्य जगदीश प्रसाद कोठारी, प्राचार्य, बैजनाथ संस्कृत महाविद्यालय
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संस्कृत से ही ¨हदी की उपज हुई है। संस्कृत के प्रचार से ¨हदी की दुर्दशा होने से बचेगी। इसका अतीत अच्छा रहा है, भविष्य भी अच्छा है।
डॉ.स्वीटी तालवाड़, प्राचार्या, दयानंद कालेज
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