मनीषा पांडे [Edited by: विकास त्रिवेदी]
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| रायपुर, 13 दिसम्बर 2014 | अपडेटेड: 10:52 IST
रायपुर साहित्य महोत्सव में फिल्म और सिनेमा पर बोलते हुए फिल्म निर्देशक सुभाष घई ने नई पीढ़ी के
बच्चों को संस्कृत पढ़ाए जाने की वकालत की. उन्होंने कहा कि संस्कृत हमारी सांस्कृतिक पहचान का
अभिन्न अंग है. सुभाष घई ने कहा कि हम संस्कृत में विवाह करते हैं, संस्कृत में हवन करते हैं,
लेकिन अपने बच्चों को संस्कृत नहीं पढ़ाना चाहते. ये गलत बात है. हमें अपने बच्चों को संस्कृत पढ़ानी
चाहिए. जापान ने अपनी पहचान इसलिए बनाई क्योंकि उस देश ने अपनी भाषा और मौलिक मूल्यों का
रास्ता कभी नहीं छोड़ा, इसलिए आज जापान का राष्ट्रीय चरित्र नंबर वन है.
भारतीय परंपराओं को याद करते हुए सुभाष घई ने कहा कि हमारा भी राष्ट्रीय चरित्र कभी हुआ करता था, लेकिन हमने उसे खराब कर दिया. जब तक हम अपने बच्चों को अपनी भाषा और संस्कृति की शिक्षा नहीं देंगे, तब तक वे कैसे जानेंगे. अगर भारत को विश्व गुरू बनना है तो यह अपनी भाषा के रास्ते ही मुमकिन हो सकता है और हमारी अपनी भाषा संस्कृत है.
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सुभाष घई
भारतीय परंपराओं को याद करते हुए सुभाष घई ने कहा कि हमारा भी राष्ट्रीय चरित्र कभी हुआ करता था, लेकिन हमने उसे खराब कर दिया. जब तक हम अपने बच्चों को अपनी भाषा और संस्कृति की शिक्षा नहीं देंगे, तब तक वे कैसे जानेंगे. अगर भारत को विश्व गुरू बनना है तो यह अपनी भाषा के रास्ते ही मुमकिन हो सकता है और हमारी अपनी भाषा संस्कृत है.
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