Saturday, 29 November 2014



फ़ेसबुक पर सुयश सुप्रभ नामक किसी महापुरुष ने धर्मशास्त्रीय व्यवस्था दी–––
आज की हिंदी वैसी नहीं है जैसी 30 साल पहले थी। आज की अंग्रेज़ी वैसी नहीं है जैसी 30 साल पहले थी। आज की जर्मन वैसी नहीं है जैसी 30 साल पहले थी। लेकिन आज की संस्कृत वैसी ही है जैसे 300 साल पहले थी। बदलता वही है जो ज़िंदा होता है।
मैंने उनसे पूछा है––––
संस्कृत वैसी ही है जैसी २५०० साल पहले थी। और लगातार है। पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, अवहट्ठ, डिंगल, पुरानी ब्रज, पुरानी अवधी, ग्रीक, अवेस्ता आदि की तरह काफ़ूर नहीं हुई । आप इस प्रवृत्ति या सामर्थ्य को क्या कहेंगे????

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