Sunday, 30 November 2014

***** संस्कृत इस देश की ही नहीं, पूरे विश्व की धरोहर है ****


संस्कृत से भारतीय छात्रों को वंचित करना उन पर अन्याय है. भाषाविज्ञान का अध्ययन हो या सभ्यता-संस्कृति का अध्ययन हो अथवा प्राचीन इतिहास-भूगोल-दर्शन-खगोल आदि का अध्ययन हो, ज्योतिष-व्याकरण-साहित्य-संगीत आदि का अध्ययन हो... संस्कृत के बिना अधूरा ही नहीं, गलत अध्ययन भी होगा... फ़ारसी-फ्रेंच-जर्मन-लेटिन आदि क्लासिकल भाषाओं की विकास-यात्रा को संस्कृत के प्रकाश में ही समझा जा सकता है. इस दृष्टि से संस्कृत विश्व की धरोहर भी है.. अतः मा. स्मृति इरानी जी का फ़ैसला बहुत ही सकारात्मक सोच का परिणाम है. संस्कृत से हमारी भाषाएँ और अधिक समृद्ध होंगी. उनका शब्दकोष निश्चित ही बढेगा.. पारस्परिक दूरियाँ घटेंगी.. सभी भारतीय भाषाओं में संस्कृत के लाखों शब्द तत्सम रूप में हैं तो किसी में कुछ परिवर्तन के साथ तद्भव रूप को प्राप्त हो गए हैं.. यह वस्तुतः संस्कृत का ही विकास है.. पालि-प्राकृत-अपभ्रंश आदि उसके परिवर्तित रूप हैं.. ये सब उसकी इस नाते बेटियाँ ही हुईं.. हिन्दी-राजस्थानी-भोजपुरी, मैथिली आदि भी संस्कृत के विविध रूप हैं.... फिर शुद्ध संस्कृत से प्राचीन ग्रन्थों का अध्ययन कर संस्कृत के मूल तथ्यों, भावों, संदेशों को सही-सही रूप में जाना जा सकता है.. वरना संस्कृत-ग्रन्थों को समझना ही मुश्किल हो जाएगा.. जर्मन को भारतीयों पर लादना ठीक नहीं है.. जो पढना चाहता है, उसके लिए वैकल्पिक विषय के रूप में ही उसे रखना चाहिए.. संस्कृत अनिवार्य होती तो और अधिक अच्छा होता; किन्तु उसे तृतीय भाषा के रूप में रखना भी अच्छा है.. इससे रोजगार की सम्भावनाएं भी बहुत अधिक हैं.. अतः इस देश की आत्मभाषा का संरक्षण आवश्यक है... माननीया स्मृति ईरानी का ह्रदय से धन्यवाद...
(डॉ.भवानी शंकर शर्मा)

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